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बढ़ने लगी है मन की हल चल
मैंने मांगा था यही पल
दूरिया मिटने का हर बंधन खुलने का यह पल है
रूप जोल सझा, प्रेम श्वर बजा, भूँजता है ये समाद
आरो बले, आरो बले, आरो बले
बढ़ने लगी है मन की हल चल
मैंने मांगा था यही पल
दूरिया मिटने का हर बंधन खुलने का यह पल है
रूप जोल सझा, प्रेम श्वर बजा, भूँजता है ये समाद
आरो बले, आरो बले, आरो बले